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मज़ाक़ बदायूनी

1819 - 1894 | बदायूँ, भारत

क्लासिकी शायरों में शामिल, दाग़ देहलवी और अमीर मीनाई के हमअस्र, ग़ज़लों के अलावा हम्द-ओ-नात भी दीवान में शामिल

क्लासिकी शायरों में शामिल, दाग़ देहलवी और अमीर मीनाई के हमअस्र, ग़ज़लों के अलावा हम्द-ओ-नात भी दीवान में शामिल

मज़ाक़ बदायूनी का परिचय

मूल नाम : सय्यद शाह मोहम्मद दिलदार अली

जन्म : 29 Dec 1819 | बदायूँ, उत्तर प्रदेश

निधन : 11 Oct 1894 | बदायूँ, उत्तर प्रदेश

हम से वहशी नहीं होने के गिरफ़्तार कभी

लोग दीवाने हैं ज़ंजीर लिए फिरते हैं

मज़ाक़ बदायूनी (सय्यद शाह मोहम्मद दिलदार अली) मज़ाक़ तख़ल्लुस। 29 दिसंबर 1819 को बदायूँ में पैदा हुए। आबाई नसब हज़रत सिद्दीक़-ए-अकबर तक पहुँचता है। अठारह बरस की उम्र में आप लखनऊ तशरीफ़ ले गए। आतिश और नासिख़ के मुशायरों में शरीक हुए और अय्यार तख़ल्लुस रखा। अरबी और फ़ारसी में कामिल दस्तगाह पैदा की। उसके बाद दिल्ली गए और ज़ौक़ के तलामिज़ा में शामिल हो गए। ख़ुश-गुफ़्तार, सलीमुत्तबा, निहायत ख़लीक़ और सुन्नत-ए-रसूलुल्लाह ﷺ से सरशार थे। नुमूद-ओ-नुमाइश से कोसों दूर थे। आपको एक निस्बत-ए-ख़ास शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी और ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ शेख़ मुईनुद्दीन चिश्ती से थी। जब तक दिल्ली में रहे, मोमिन और ग़ालिब के मुशायरों में शिरकत करते रहे। 11 अक्टूबर 1894 को बदायूँ में वफ़ात पा गए। हर साल उनके मज़ार पर तीन दिन उर्स होता है। उनके दीवान में ग़ज़लों की तादाद कम है, ज़्यादा तादाद हम्द, नात, मनक़बत, मुसद्दस और मसनवी की है।

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