मीर ताहिर अली रिज़वी के शेर
मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा
उस को छुट्टी न मिले जिस को सबक़ याद रहे
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere