aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
- 1813
यही तो कुफ़्र है यारान-ए-बे-ख़ुदी के हुज़ूर
जो कुफ़्र-ओ-दीं का मिरे यार इम्तियाज़ रहा
बैठ कर मस्जिद में रिंदों से न इतना बिगड़ए
शैख़-जी आते हो मयख़ाने के भी अक्सर तरफ़
पाकी-ए-दामान-ए-गुल की खा न ऐ बुलबुल क़सम
रात भर सरशार-ए-कैफ़िय्यत मैं शबनम से रहा
क्या सबब बतलाएँ हँसते हँसते बाहम रुक गए
ख़ुद-बख़ुद कुछ वो खींचे ईधर उधर हम रुक गए
देर तक ज़ब्त-ए-सुख़न कल उस में और हम में रहा
बोल उठे घबरा के जब आख़िर के तईं दम रुक गए
दीवान-ए-लुत्फ़
1983
Gulshan-e-Hind
1906
1972
हयात-ए-लुत्फ़
1962
Masnavi-e-Lutf Nairang-e-Ishq
मिर्ज़ा अली लुत्फ़ हयात और कारनामे
1979
Tazkira Gulshan-e-Hind
1986
2005
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