मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तरक़्क़ी के शेर
हक़ीक़त छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से
कि ख़ुशबू आ नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से
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ऐ 'तरक़्क़ी' बात जी की जी में रख
मुँह से निकली और पराई हो गई
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