मिर्ज़ा सलामत अली दबीर के शेर
दिल साफ़ हो किस तरह कि इंसाफ़ नहीं है
इंसाफ़ हो किस तरह कि दिल साफ़ नहीं है
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किस शेर की आमद है कि रन काँप रहा है
रुस्तम का जिगर ज़ेर-ए-कफ़न काँप रहा है
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