क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो
सय्याह, मियाँदाद ख़ाँ (1829-1907) सूरत (गुजरात) के रहने वाले थे। मिर्ज़ा ग़ालिब से दोस्ती और शागिर्दी का रिश्ता था। सैर-सपाटे का बहुत शौक़ था और इस पर दिल खोल कर ख़र्च करते थे। बा’द में खुला कि जा’ली नोट छापते थे, और इसी सिलसिले में क़ैद की सज़ा काटी। कै़द के दौरान ही मलिका विक्टोरिया का क़सीदा लिखा जिससे सज़ा की मुद्दत कई साल कम हो गई। आख़िरी ज़माना बहुत सख़्ती में गुज़रा।
प्राधिकरण नियंत्रण :लाइब्रेरी ऑफ कॉंग्रेस नियंत्रण संख्या : n89263063