मुहम्मद याक़ूब आमिर के शेर
बाद-ए-नफ़रत फिर मोहब्बत को ज़बाँ दरकार है
फिर अज़ीज़-ए-जाँ वही उर्दू ज़बाँ होने लगी
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टैग : उर्दू
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हर नया रस्ता निकलता है जो मंज़िल के लिए
हम से कहता है पुरानी रहगुज़र कुछ भी नहीं
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मुझे भी ख़ुद न था एहसास अपने होने का
तिरी निगाह में अपना मक़ाम खोने तक
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न समझे अश्क-फ़िशानी को कोई मायूसी
है दिल में आग अगर आँख में भी पानी है
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सच कहियो कि वाक़िफ़ हो मिरे हाल से 'आमिर'
दुनिया है ख़फ़ा मुझ से कि दुनिया से ख़फ़ा मैं
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सर के नीचे ईंट रख कर उम्र भर सोया है तू
आख़िरी बिस्तर भी 'आमिर' तेरा फ़र्श-ए-ख़ाक था
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बज़्म में यूँ तो सभी थे फिर भी 'आमिर' देर तक
तेरे जाने से रही इक ख़ामुशी चारों तरफ़
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धीरे धीरे सर में आ कर भर गया बरसों का शोर
रफ़्ता रफ़्ता आरज़ू-ए-दिल धुआँ होने लगी
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चैन ही कब लेने देता था किसी का ग़म हमें
ये न देखा उम्र भर अपना भी दामन चाक था
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मैं आज कल के तसव्वुर से शाद-काम तो हूँ
ये और बात कि दो पल की ज़िंदगानी है
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चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़
और फिर तन्हाई की हम-साएगी चारों तरफ़
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