मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल 25
नज़्म 1
अशआर 12
देखना है किस में अच्छी शक्ल आती है नज़र
उस ने रक्खा है मिरे दल के बराबर आईना
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तुम ऐसे बे-ख़बर भी शाज़ होंगे इस ज़माने में
कि दिल में रह के अंदाज़ा नहीं है दिल की हालत का
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फ़ना होने में सोज़-ए-शम'अ की मिन्नत-कशी कैसी
जले जो आग में अपनी उसे परवाना कहते हैं
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