नादिया अंबर लोधी के शेर
बस चंद हम-ख़याल हैं 'अम्बर' मुझे अज़ीज़
बेहिस जम्म-ए-ग़फ़ीर नहीं चाहिए मुझे
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'अम्बर' उस के बीते कल का क़िस्सा हूँ मैं
फिर काहे का शौक़ कि उस को याद भी हूँ मैं
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ज़िंदा रहते हैं क्या ये काफ़ी नहीं
कोई लाज़िम है कि फिर ख़ुश भी हों
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पा-ब-जौलाँ तो हर इक शख़्स यहाँ है 'अम्बर'
तिरी ज़ंजीर ही क्यूँ शोर बपा करती है
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हुसैन रिफ़अतें तक़्सीम करता है अब भी
यज़ीद आज भी रुस्वाइयाँ समेटता है
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