दानिशगाहों में मुश्किल से चार फ़ीसद या तीन फ़ीसद असातिज़ा ऐसे होंगे, जो मुताला फ़रमाते हैं, बाक़ी सब तरक़्क़ी के हिज्जे करते रहते हैं। ऐसे क़हत के आलम में जब ये मालूम होता है कि फ़ुलाँ शख़्स ने किताब पढ़ी है तो किस क़दर मुसर्रत होती है। इस को सही तौर पर बयान करना मुश्किल है।