नसीम भरतपुरी, सय्यद शब्बीर हसन (1861-1909) भरत पुर के एक क़स्बे में आँखें खोलीं। भरी जवानी में ‘दाग़’ देहलवी की शागिर्दी में आए। उस्ताद को अपने इस शागिर्द का इतना मान था कि अपने तीसरे दीवान की तय्यारी के लिए उन्हें हैदराबाद बुलाया। उस्ताद की शा’इरी पर होने वाली आलोचनाओं का जवाब ‘नसीम’ भरतपुरी ही दिया करते थे।