नाशिर नक़वी के शेर
सफ़र का ख़ात्मा होता नहीं कहीं अपना
हर इक पड़ाव से इक इब्तिदा निकलती है
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जाने कब कौन से लम्हे में ज़रूरत पड़ जाए
तुम हमारे लिए पहले से दुआ कर रखना
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उस के करम का एक सहारा जो मिल गया
फिर उम्र भर किसी की ज़रूरत नहीं हुई
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वफ़ा की राह में दिल का सिपास रख दूँगा
मैं हर नदी के किनारे पे प्यास रख दूँगा
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