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नाशिर नक़वी

1956 | पटियाला, भारत

नाशिर नक़वी

ग़ज़ल 24

नज़्म 7

अशआर 4

सफ़र का ख़ात्मा होता नहीं कहीं अपना

हर इक पड़ाव से इक इब्तिदा निकलती है

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जाने कब कौन से लम्हे में ज़रूरत पड़ जाए

तुम हमारे लिए पहले से दुआ कर रखना

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उस के करम का एक सहारा जो मिल गया

फिर उम्र भर किसी की ज़रूरत नहीं हुई

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वफ़ा की राह में दिल का सिपास रख दूँगा

मैं हर नदी के किनारे पे प्यास रख दूँगा

पुस्तकें 37

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