नवीन सी. चतुर्वेदी के शेर
प्यास को प्यार करना था केवल
एक अक्षर बदल न पाए हम
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भुला दिया है जो तू ने तो कुछ मलाल नहीं
कई दिनों से मुझे भी तिरा ख़याल नहीं
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बग़ैर पूछे मिरे सर में भर दिया मज़हब
मैं रोकता भी तो कैसे कि मैं तो बच्चा था
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मिरा साया मिरे बस में नहीं है
मगर दुनिया पे दावा कर रहा हूँ
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किस को फ़ुर्सत है जो हर्फ़ों की हरारत समझाए
बात आसानी तक आए तो सभी तक पहुँचे
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बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ुतूर
जिस्म दरवाज़े तक आए तो गली तक पहुँचे
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अब हवाओं के दाम खुलने हैं
ख़ुशबुओं का तो हो चुका सौदा
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हम तो उस के ज़ेहन की उर्यानियों पर मर मिटे
दाद अगरचे दे रहे हैं जिस्म और पोशाक पर
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नए सफ़र का हर इक मोड़ भी नया था मगर
हर एक मोड़ पे कोई सदाएँ देता था
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परसों मैं बाज़ार गया था दर्पन लेने की ख़ातिर
क्या बोलूँ दूकान पे ही मैं शर्म के मारे गड़ बैठा
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कुछ भँवर यूँ उचट पड़े थे ज्यूँ
ख़ुद-कुशी पर हो कोई आमादा
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