नवाब अली असग़र के शेर
अगर बख़्शे ज़हे क़िस्मत न बख़्शे तो शिकायत क्या
सर-ए-तस्लीम ख़म है जो मिज़ाज-ए-यार में आए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere