aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1750
इस माजरा को जा के कहूँ किस के रू-ब-रू
मेरी तो दौड़ हैगी तिरे आस्ताँ तिलक
और सब 'मानी' ने तेरी तो बनाई तस्वीर
पर दुरुस्त हो न सकी चेहरे की पर्वाज़ हनूज़
जितना कि है इफ़रात तिरी कम-निगही का
उतना ही इधर देखो तो ये दीदा-ए-नम है
लोगों के फोड़ता फिरे शीशे
मोहतसिब को तो मस्ख़रा कहिए
साने' मिरा वो है कि हो कैसी ही चोब-ए-ख़ुश्क
सौ सौ दफ़ा वो चाहे तो उस को हरी करे
दीवान-ए-नैन सुख
1992
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