नज़ीर क़ैसर के शेर
बरस रही थी बारिश बाहर
और वो भीग रहा था मुझ में
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कोई मुझ को ढूँढने वाला
भूल गया है रस्ता मुझ में
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यूँ तुझे देख के चौंक उठती हैं सोई यादें
जैसे सन्नाटे में आवाज़ लगा दे कोई
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बिखरता जाता है कमरे में सिगरटों का धुआँ
पड़ा है ख़्वाब कोई चाय की प्याली में
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बच्चे ने तितली पकड़ कर छोड़ दी
आज मुझ को भी ख़ुदा अच्छा लगा
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बस हम दोनों ज़िंदा हैं
बाक़ी दुनिया फ़ानी है
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टैग : दुनिया
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चलते चलते मैं उस को घर ले आया
वो भी अपना हाथ छुड़ाना भूल गया
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ख़्वाब क्या था जो मिरे सर में रहा
रात भर इक शोर सा घर में रहा
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टैग : ख़्वाब
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मैं उसे कैसे जीत सकता हूँ
वो मुझे अपना जिस्म हारती है
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अब के बार मैं तुझ से मिलने नहीं आया
तुझ को अपने साथ ले जाने आया हूँ
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उस ने ख़त में भेजे हैं
भीगी रात और भीगा दिन
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बिखर के जाता कहाँ तक कि मैं तो ख़ुशबू था
हवा चली थी मुझे अपने हम-रिकाब लिए
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उभर रहे हैं कई हाथ शब के पर्दे से
कोई सितारा लिए कोई माहताब लिए
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रंग लाई है हसरत-ए-तामीर
गिर रही हैं इमारतें क्या क्या
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कभी करना हो अंदाज़ा जब अपने दर्द का मुझ को
मैं उस बेदर्द के दिल को दुखा कर देखा लेता हूँ
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