ओवेस अहमद दौराँ के शेर
शायद किसी की याद का मौसम फिर आ गया
पहलू में दिल की तरह धड़कने लगी है शाम
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कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले
कुछ लोग हैं हम जैसे कुछ लोग हैं तुम जैसे
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बहती नहीं है मर्द की आँखों से जू-ए-अश्क
लेकिन हमें बताओ कि हम किस लिए हँसें
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ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं मक़्तल है रफ़ीक़ो!
हर शाख़ है तलवार यहाँ, जागते रहना
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उन मकानों में भी इंसान ही रहते होंगे
रौनक़ें जिन में नहीं आप की महफ़िल की सी
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पैवंद की तरह नज़र आता है बद-नुमा
पुख़्ता मकान कच्चे घरों के हुजूम में
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सब मस्तियों में फेंको न पत्थर इधर उधर
दीवानो! इस दयार में शीशे के घर भी हैं
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ऐसा न हो ये रात कोई हश्र उठा दे
उठता है सितारों से धुआँ जागते रहना
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हम शाएर-ए-हयात हैं हम शाएर-ए-हयात!
'दौराँ' वो सुर्ख़ रंग का परचम तो दो हमें
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वो लहू पी कर बड़े अंदाज़ से कहता है ये
ग़म का हर तूफ़ान उस के घर के बाहर आएगा
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बे-दारों की दुनिया कभी लुटती नहीं 'दौराँ'
इक शम्अ लिए तुम भी यहाँ जागते रहना
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ये ज़ीस्त कि है फूल सी मिट जाए बला से
गुलचीं से मगर बर-सर-ए-पैकार ही रहिए
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