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jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Owais Ahmad Dauran's Photo'

ओवेस अहमद दौराँ

1938 | बिहार, भारत

प्रगतिशील शायर, लेखक, इक बेवफ़ा के नाम जैसी नज़्मों और अपनी आत्मकथा मेरी कहानी के लिए प्रसिद्ध

प्रगतिशील शायर, लेखक, इक बेवफ़ा के नाम जैसी नज़्मों और अपनी आत्मकथा मेरी कहानी के लिए प्रसिद्ध

ओवेस अहमद दौराँ के शेर

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शायद किसी की याद का मौसम फिर गया

पहलू में दिल की तरह धड़कने लगी है शाम

कुछ दर्द के मारे हैं कुछ नाज़ के हैं पाले

कुछ लोग हैं हम जैसे कुछ लोग हैं तुम जैसे

बहती नहीं है मर्द की आँखों से जू-ए-अश्क

लेकिन हमें बताओ कि हम किस लिए हँसें

ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं मक़्तल है रफ़ीक़ो!

हर शाख़ है तलवार यहाँ, जागते रहना

उन मकानों में भी इंसान ही रहते होंगे

रौनक़ें जिन में नहीं आप की महफ़िल की सी

सब मस्तियों में फेंको पत्थर इधर उधर

दीवानो! इस दयार में शीशे के घर भी हैं

पैवंद की तरह नज़र आता है बद-नुमा

पुख़्ता मकान कच्चे घरों के हुजूम में

हम शाएर-ए-हयात हैं हम शाएर-ए-हयात!

'दौराँ' वो सुर्ख़ रंग का परचम तो दो हमें

ये ज़ीस्त कि है फूल सी मिट जाए बला से

गुलचीं से मगर बर-सर-ए-पैकार ही रहिए

ऐसा हो ये रात कोई हश्र उठा दे

उठता है सितारों से धुआँ जागते रहना

वो लहू पी कर बड़े अंदाज़ से कहता है ये

ग़म का हर तूफ़ान उस के घर के बाहर आएगा

बे-दारों की दुनिया कभी लुटती नहीं 'दौराँ'

इक शम्अ लिए तुम भी यहाँ जागते रहना

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