पंडित विद्या रतन आसी के शेर
रात है चाँद है सितारे हैं
बे-सहारों के सौ सहारे हैं
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ये मंज़िल-ए-हक़ के दीवानो कुछ सोच करो कुछ कर गुज़रो
क्या जाने कब क्या कर गुज़रे ये वक़्त का रावन क्या कहिए
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