क़मर जमील
ग़ज़ल 18
नज़्म 19
अशआर 4
अपनी नाकामियों पे आख़िर-ए-कार
मुस्कुराना तो इख़्तियार में है
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एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
फूल बनने के इंतिज़ार में है
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या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी हो
या बनारस में जहाँ हर घाट पर सैलाब है
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हम सितारों की तरह डूब गए
दिन क़यामत के इंतिज़ार में है
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