क़मर मुरादाबादी
ग़ज़ल 8
अशआर 10
किसी की राह में काँटे किसी की राह में फूल
हमारी राह में तूफ़ाँ है देखिए क्या हो
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ग़म की तौहीन न कर ग़म की शिकायत कर के
दिल रहे या न रहे अज़मत-ए-ग़म रहने दे
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जिस क़दर जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर होता गया
इश्क़ ख़ुद तर्क ओ तलब से बे-ख़बर होता गया
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मंज़िलों के निशाँ नहीं मिलते
तुम अगर ना-गहाँ नहीं मिलते
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यूँ न मिलने के सौ बहाने हैं
मिलने वाले कहाँ नहीं मिलते
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