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क़ैसर ख़ालिद

1971 | मुंबई, भारत

क़ैसर ख़ालिद के शेर

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मीठी बातें, कभी तल्ख़ लहजे के तीर

दिल पे हर दिन है उन का करम भी नया

बातों से फूल झड़ते थे लेकिन ख़बर थी

इक दिन लबों से उन के ही नश्तर भी आएँगे

डाल दी पैरों में उस शख़्स के ज़ंजीर यहाँ

वक़्त ने जिस को ज़माने में उछलते देखा

मोहमल है जानें तो, समझें तो वज़ाहत है

है ज़ीस्त फ़क़त धोका और मौत हक़ीक़त है

आतिश-ए-इश्क़ से बचिए कि यहाँ हम ने भी

मोम की तरह से पत्थर को पिघलते देखा

तेरे बिन हयात की सोच भी गुनाह थी

हम क़रीब-ए-जाँ तिरा हिसार देखते रहे

हो पाए किसी के हम भी कहाँ यूँ कोई हमारा भी हुआ

कब ठहरी किसी इक पर भी नज़र क्या चीज़ है शहर-ए-ख़ूबाँ भी

अब इस तरह भी रिवायत से इंहिराफ़ कर

बदल अगरचे तू अच्छा दे, ख़राब तो दे

उम्र भर खुल नहीं पाते हैं रुमूज़-ओ-असरार

लोग कुछ सामने रह कर भी निहाँ होते हैं

कुछ तू ही बता आख़िर क्यूँ-कर तिरे बंदों पर

हर शब है नई आफ़त हर रोज़ मुसीबत है

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