राजा जिया लाल बहादुर गुलशन के शेर
बहार आई शगूफ़ा फूला खुला है तख़्ता हर इक चमन का
कहीं तमाशा है यासमन का कहीं नज़ारा है नस्तरन का
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नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ
हर वरक़ ख़ुर्शीद का मानिंद-ए-नूर अफ़्शाँ हुआ
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