रासिख़ इरफ़ानी के शेर
कितना नादिम हूँ किसी शख़्स से शिकवा कर के
मुझ से देखा न गया उस का पशेमाँ होना
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अटा है शहर बारूदी धुएँ से
सड़क पर चंद बच्चे रो रहे हैं
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वो अहल-ए-कहफ़ थे जिन को ज़िया मिली आख़िर
मिरा ये दौर कि अब तक अंधेरा ग़ार में है
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