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रिफ़अत सुलतान

रिफ़अत सुलतान

ग़ज़ल 16

अशआर 8

दिल में कोई ख़ुशी नहीं लेकिन

आदतन मुस्कुरा रहा हूँ मैं

ग़म-ए-हयात से इतनी भी है कहाँ फ़ुर्सत

कि तेरी याद में जी भर के रो लिया जाए

तू मिरी बात का जवाब दे

मैं समझता हूँ ख़ामुशी की ज़बाँ

मुझे भी यूँ तो बड़ी आरज़ू है जीने की

मगर सवाल ये है किस तरह जिया जाए

उम्र भर तुझ को देखने पर भी

ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा कम नहीं होता

पुस्तकें 8

 

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