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साबिर आफ़ाक़

1982 | जलगाँव, भारत

साबिर आफ़ाक़

ग़ज़ल 10

नज़्म 1

 

अशआर 11

मुझ को लगता है घड़ी जिस ने बनाई होगी

इंतिज़ार उस को भी शिद्दत से किसी का होगा

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मौत जाए वबा में ये अलग बात मगर

हम तिरे हिज्र में नाग़ा तो नहीं कर सकते

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पूछ उस शख़्स से मैं जिस को नहीं मिल पाया

मैं तुझे जितना मयस्सर हूँ तिरी क़िस्मत है

बहुत ही ख़ुश्की में गुज़री है इस बरस होली

गिला है तुझ से कि गीला नहीं किया मुझ को

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हल निकल आएँगे मसाइल के

ख़ुद-कुशी करने वालो बात करो

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