सहबा अख़्तर
ग़ज़ल 31
नज़्म 4
अशआर 11
दिल के उजड़े नगर को कर आबाद
इस डगर को भी कोई राही दे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
बयान-ए-लग़्ज़िश-ए-आदम न कर कि वो फ़ित्ना
मिरी ज़मीं से नहीं तेरे आसमाँ से उठा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मेरे सुख़न की दाद भी उस को ही दीजिए
वो जिस की आरज़ू मुझे शाएर बना गई
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
'सहबा' साहब दरिया हो तो दरिया जैसी बात करो
तेज़ हवा से लहर तो इक जौहड़ में भी आ जाती है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
वीडियो 4
This video is playing from YouTube