पंडित अमरनाथ 1863 को देहली में पैदा हुए. पतनशील मुग़ल सलतनत और देहली की डरावनी सामाजिक,राजनैतिक, और सांस्कृतिक फ़िज़ा में उनकी परवरिश हुई जिसके असर से उनका स्वाभाविक और वैचारिक मिलान तसव्वुफ़ की तरफ़ हो गया. साहिर की शाइरी वास्तविकता व ज्ञान, तसव्वुफ़ और विवेक के रंगों से भरी हुई है. साहिर उर्दू, फ़ारसी और संस्कृत के भी विद्वान थे, योग अभ्यास और वेदांत पर उनकी गहरी दृष्टि थी. अध्ययन के ये प्रभाव भी उनकी शाइरी में नज़र आते हैं. साहिर का उर्दू दीवान ‘कुफ़्र-ए-इश्क़’ के नाम से प्रकाशित हुआ और फ़ारसी काव्य संग्रह ‘चराग़-ए-मा’र्फ़त’ के नाम से प्रकाशित हुई.1962 में साहिर का देहांत हुआ.