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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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साहिर सियालकोटी

1906 - 1984 | जालंधर, भारत

साहिर सियालकोटी के शेर

होती है दूसरों को हमेशा ये नागवार

अपने सिवा किसी को नसीहत कीजिए

गुलों को तोड़ते हैं सूँघते हैं फेंक देते हैं

ज़ियादा भी नुमाइश हुस्न की अच्छी नहीं होती

सँभल कर पाँव रखना वादी-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में

यहाँ जो सैर को आता है बच कर कम निकलता है

ये क्यूँकर मान लें उल्फ़त हमें करनी नहीं आती

किया है काम ही क्या और उल्फ़त के सिवा हम ने

शम्अ' अहल-ए-बज़्म तो बैठे ही रह गए

कहने की थी जो बात वो परवाना कह गया

बढ़ी है ख़ाना-ए-दिल में कुछ और तारीकी

चराग़-ए-इश्क़ जलाया था रौशनी के लिए

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