सलीम अहमद
ग़ज़ल 64
नज़्म 22
अशआर 70
इतनी काविश भी न कर मेरी असीरी के लिए
तू कहीं मेरा गिरफ़्तार न समझा जाए
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किसी को क्या बताऊँ कौन हूँ मैं
कि अपनी दास्ताँ भूला हुआ हूँ
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याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक
मैं भरी महफ़िल में बैठा था कि तन्हा हो गया
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हम ने शिकवा कभी किया न करें
शिकवा है ए'तिराफ़ नाकामी
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