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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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समर कबीर

1957

उर्दू ग़ज़ल के प्रतिष्ठित कवि, 'बज़्म-ए-तामीर-ए-अदब' के संस्थापक और कई साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित

उर्दू ग़ज़ल के प्रतिष्ठित कवि, 'बज़्म-ए-तामीर-ए-अदब' के संस्थापक और कई साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित

समर कबीर

ग़ज़ल 8

अशआर 10

रात बस्ती जली ग़रीबों की

सुब्ह अख़बार हो गए रौशन

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क़दम क़दम पे मिरे ख़्वाब जल रहे हैं यहाँ

मैं इस ज़मीन को जन्नत बनाने आया था

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मेरी मज़दूरी के पैसे मुझे दे दो मालिक

आज बेटी मिरी ससुराल से आई हुई है

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इन ग़रीब लोगों की ये 'अजीब मुश्किल है

सर झुका के कहते हैं सर नहीं झुकाएँगे

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जो मिरे सोचने की बातें हैं

दूसरे सोचते हैं मेरे लिए

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क़ितआ 5

 

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