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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Sandeep Gupte's Photo'

संदीप गुप्ते

1961 | भोपाल, भारत

संदीप गुप्ते के शेर

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दुल्हन की मेहंदी जैसी है उर्दू ज़बाँ की शक्ल

ख़ुशबू बिखेरता है इबारत का हर्फ़ हर्फ़

मैं तुम्हारे शहर की तहज़ीब से वाक़िफ़ था

पत्थरों से की नहीं थी गुफ़्तुगू पहले कभी

ग़ज़ल में जब तलक एहसास की शिद्दत हो शामिल

फ़क़त अल्फ़ाज़ की कारीगरी महसूस होती है

कोई भी शख़्स दुनिया में तुम्हें छोटा नज़र आए

तुम अपने सोचने का दायरा इतना बड़ा कर लो

हम एहतियात की ऐसी मिसाल देते हैं

तुम्हारा ज़िक्र भी आया तो टाल देते हैं

हमें क़ुबूल नहीं छोटा मुँह बड़ी बातें

मिसाल बनते हैं और फिर मिसाल देते हैं

कोई हयात के मअ'नी बता के समझाए

तवील क्या है भला मुख़्तसर का क्या मतलब

उस से मेरा कोई रिश्ता निकला

मेरे जैसा वो भी तन्हा निकला

तू कहाँ रहती है पूछा था किसी ने एक दिन

मैं ग़मों के साथ रहती हूँ ख़ुशी कहने लगी

मोहब्बत तो किसी से कर पाए

किसी से तुम शिकायत क्या करोगे

फिर एक बार गुनाहों से हम ने की तौबा

फिर एक बार किया हम ने अपना काम शुरूअ'

आँधियाँ आईं उठा कर ले गईं सब बस्तियाँ

मैं ने इक दिल में बनाया था मकाँ अच्छा हुआ

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