aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
न रहे बाग़-ए-जहाँ में कभी आराम से हम
फँस गए क़ैद-ए-क़फ़स में जो छुटे दाम से हम
चश्म-ए-बद-दूर अजब ख़ुश-क़द-ओ-क़ामत होगा
अभी फ़ित्ना है कोई दिन में क़यामत होगा
ख़ुदा किसी को गिरफ़्तार ज़ुल्फ़ का न करे
नसीब में किसी काफ़िर के ये बला न करे
आह दी सीने में आतिश कौन सी बे-दर्द ने
दिल से ले कर मुँह तलक उमडा हुआ इक दर्द है
अपने मज़हब में है इक शर्त तरीक़-ए-इख़्लास
कुछ ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से हम
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