सरफ़राज़ नवाज़ के शेर
बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊँचाई तक
माँ दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है
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इस गए साल बड़े ज़ुल्म हुए हैं मुझ पर
ऐ नए साल मसीहा की तरह मिल मुझ से
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टैग : नया साल
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बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे
चलते चलते मैं बहुत दूर निकल जाता हूँ
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ख़ुदा करे कि वही बात उस के दिल में हो
जो बात कहने की हिम्मत जुटा रहा हूँ मैं
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हम अपने शहर से हो कर उदास आए थे
तुम्हारे शहर से हो कर उदास जाना था
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सफ़र कहाँ से कहाँ तक पहुँच गया मेरा
रुके जो पाँव तो काँधों पे जा रहा हूँ मैं
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इश्क़ अदब है तो अपने आप आए
गर सबक़ है तो फिर पढ़ा मुझ को
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तुम्हारे सच की हिफ़ाज़त में यूँ हुआ अक्सर
कि अपने-आप को झूटा बना लिया मैं ने
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बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ
चुका रहा हूँ किराया मैं चंद साँसों का
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वो कोई आम सा ही जुमला था
तेरे मुँह से बुरा लगा मुझ को
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मिरे बग़ैर कोई तुम को ढूँडता कैसे
तुम्हें पता है तुम्हारा पता रहा हूँ मैं
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कितना दुश्वार है इक लम्हा भी अपना होना
उस को ज़िद है कि मैं हर हाल में उस का हो जाऊँ
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आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
तू सजाता है बदन जब कभी उर्यानी से
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