सरशार बुलंदशहरी के दोहे
वक़्त बहुत मसरूफ़ है थोड़ा वक़्त निकाल
इक दो साअत के लिए अपना-आप सँभाल
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वक़्त बड़ा चालाक है वक़्त के साथ चलो
सारे दिन चलते रहियो सारी रात चलो
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कोयल आम की डाल पे बैठी शोर मचाए
फूल आया फल आ गए इक तुम ही नहीं आए
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रस्ते में इक पेड़ पर पंछी बोल गया
पंछी की आवाज़ से जीवन डोल गया
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