शानुल हक़ हक़्क़ी के शेर
तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े न निबाहे जाते
वर्ना हम को भी तमन्ना थी कि चाहे जाते
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बड़ी तलाश से मिलती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
क़ज़ा की तरह पता पूछती नहीं आती
लोग तुम से भी सितम-पेशा कहाँ होते हैं
जो कहीं का न रखें और फिर अपना न कहें
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