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शाद अज़ीमाबादी

1846 - 1927 | पटना, भारत

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में विख्यात।

अग्रणी पूर्व-आधुनिक शायरों में विख्यात।

शाद अज़ीमाबादी

ग़ज़ल 57

नज़्म 1

 

अशआर 42

अजल भी टल गई देखी गई हालत आँखों से

शब-ए-ग़म में मुसीबत सी मुसीबत हम ने झेली है

जीते जी हम तो ग़म-ए-फ़र्दा की धुन में मर गए

कुछ वही अच्छे हैं जो वाक़िफ़ नहीं अंजाम से

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तेरे बीमार-ए-मोहब्बत की ये हालत पहुँची

कि हटाया गया तकिया भी सिरहाने वाला

दिल-ए-मुज़्तर से पूछ रौनक़-ए-बज़्म

मैं ख़ुद आया नहीं लाया गया हूँ

भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो

तो ख़ामुशी को भी इज़हार-ए-मुद्दआ कहिए

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tamannaa.o.n me.n uljhaayaa gayaa huu.n

उस्बताद बरकत अली ख़ान

ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

आबिदा परवीन

ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम

आबिदा परवीन

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

मेहरान अमरोही

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

उस्बताद बरकत अली ख़ान

ऑडियो 10

ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम

कुछ कहे जाता था ग़र्क़ अपने ही अफ़्साने में था

ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया

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