शाहिद ग़ाज़ी के शेर
तुझे इस गाँव से जाना है इक दिन
हवेली क्यूँ बनाना चाहता है
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माझी ने डुबोया है लहरों ने उछाला है
गर्दिश के समुंदर का दस्तूर निराला है
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मुफ़लिसों की बस्ती को बेकसी ने घेरा है
हर तरफ़ उदासी है ज़ुल्मतों का डेरा है
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इस रंग बदलती दुनिया में पहचान बड़ी ही मुश्किल है
ये किस को ख़बर है ऐ 'शाहिद' किस भेस में कौन लुटेरा है
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तेरी फ़य्याज़ी के थे चर्चे बहुत मैं ने सुने
फिर भी तेरे मय-कदे से तिश्ना-काम आया हूँ मैं
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