शकील अहमद ज़िया के शेर
आप के क़ुर्ब से पहले मुझे मालूम न था
ज़िंदगी इतनी दिल-आवेज़ भी हो सकती है
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या तिरा तज़्किरा करे हर शख़्स
या कोई हम से गुफ़्तुगू न करे
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क्या लुत्फ़-ए-कलाम फ़ासलों से
सीने से लगो तो बात होगी
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