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Shamsur Rahman Faruqi
Article 54
Short story 4
Quote 24

उर्दू एक छोटी ज़बान है और उम्र भी इसकी बहुत कम है। इस के बोलने वालों की कोई सियासी क़ुव्वत भी नहीं है। जैसी कि अरबी बोलने वालों की है। लेकिन फिर भी उर्दू इस वक़्त दुनिया की चंद एक ज़बानों में से एक है जो हक़ीक़ी तौर पर बैन-उल-अक़वामी हैं।
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तन्क़ीद का मक़सद मालूमात में इज़ाफ़ा करना नहीं बल्कि इल्म में इज़ाफ़ा करना है।
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अदब में ये कोई शर्त नहीं है कि महसूस की हुई बातें ही लिखी जाएं। अदब तो ज़बान का मामला है। ज़बान में जो इज़हार मुम्किन है वो अदब का इज़हार हो सकता है।
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दुनिया की निगाहों में तो मेरी पहचान ऐसे नक़्क़ाद की है जिसने अदब के हर मैदान में तन्क़ीद का हक़ अदा किया है लेकिन जिसके ख़्यालात ने लोगों को गुमराह भी किया है। फ़र्क़ सिर्फ ये है कि दुनिया जिसे गुमराही क़रार देती है मैं उसे राह-ए-मुस्तक़ीम समझता हूँ।
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जब तालीम के नाम पर ख़ाँदगी की तौसीअ होने लगती है तो मेयार में ज़बरदस्त इन्हितात पैदा होता है।
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interview 10
Sher-o-Shayari 1
banā.eñge na.ī duniyā ham apnī
tirī duniyā meñ ab rahnā nahīñ hai
banaenge nai duniya hum apni
teri duniya mein ab rahna nahin hai
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