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शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

1935 - 2020 | इलाहाबाद, भारत

शायर, कथाकार और श्रेष्ठ उर्दू समीक्षक

शायर, कथाकार और श्रेष्ठ उर्दू समीक्षक

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

लेख 54

कहानी 4

 

उद्धरण 24

उर्दू एक छोटी ज़बान है और उम्र भी इसकी बहुत कम है। इस के बोलने वालों की कोई सियासी क़ुव्वत भी नहीं है। जैसी कि अरबी बोलने वालों की है। लेकिन फिर भी उर्दू इस वक़्त दुनिया की चंद एक ज़बानों में से एक है जो हक़ीक़ी तौर पर बैन-उल-अक़वामी हैं।

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तन्क़ीद का मक़सद मालूमात में इज़ाफ़ा करना नहीं बल्कि इल्म में इज़ाफ़ा करना है।

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अदब में ये कोई शर्त नहीं है कि महसूस की हुई बातें ही लिखी जाएं। अदब तो ज़बान का मामला है। ज़बान में जो इज़हार मुम्किन है वो अदब का इज़हार हो सकता है।

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दुनिया की निगाहों में तो मेरी पहचान ऐसे नक़्क़ाद की है जिसने अदब के हर मैदान में तन्क़ीद का हक़ अदा किया है लेकिन जिसके ख़्यालात ने लोगों को गुमराह भी किया है। फ़र्क़ सिर्फ ये है कि दुनिया जिसे गुमराही क़रार देती है मैं उसे राह-ए-मुस्तक़ीम समझता हूँ।

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जब तालीम के नाम पर ख़ाँदगी की तौसीअ होने लगती है तो मेयार में ज़बरदस्त इन्हितात पैदा होता है।

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साक्षात्कार 10

अशआर 1

बनाएँगे नई दुनिया हम अपनी

तिरी दुनिया में अब रहना नहीं है

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ग़ज़ल 20

नज़्म 17

पुस्तकें 506

वीडियो 20

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हास्य वीडियो

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

क़त्ल किए पर ग़ुस्सा क्या है लाश मिरी उठवाने दो

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

जिब्रईल-ओ-इबलीस

जिब्रईल शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

यगानगत

ज़माने में कोई बुराई नहीं है शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

पिया बाज प्याला पिया जाए ना

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

समुंदर का बुलावा

ये सरगोशियाँ कह रही हैं अब आओ कि बरसों से तुम को बुलाते बुलाते मिरे शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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