शौक़ क़िदवाई के शेर
इतरा के आईना में चिढ़ाते थे अपना मुँह
देखा मुझे तो झेंप गए मुँह छुपा लिया
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मसअला कसरत में वहदत का हुआ हल तुम से ख़ूब
एक ही झूट और तुम्हारे लाख इक़रारों में है
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ये दिल की बात ही मुँह से अदा नहीं होती
मैं क्या कहूँ कि यहाँ बार बार क्यूँ आया
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टैग : इज़हार
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जुनून को वो बनावट समझ रहा है अभी
ये सुन लिया है किसी से कि मेरे घर भी है
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