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हिंदुस्तान की नई नस्ल की शाइरात में नुमायाँ, ग़ज़ल और नज़्म में यक्साँ क़ुदरत

हिंदुस्तान की नई नस्ल की शाइरात में नुमायाँ, ग़ज़ल और नज़्म में यक्साँ क़ुदरत

शहला कलीम के शेर

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हासिल हुआ है तुझ को मुझी से शु'ऊर-ए-ज़ात

मैं तेरा आइना हूँ मिरा एहतिराम कर

कूज़ा-गर किस को मयस्सर रही फ़ुर्सत तेरी

क्यों हमें चाक से 'उजलत में उतारा तू ने

शिकस्तगी थी कुछ ऐसी कि कूज़ा-गर मेरा

बना के मुझ को बड़ी देर तक उदास रहा

नक़्श-गर यक़ीन कर अच्छा नहीं बना

ला फिर से काएनात का नक़्शा बनाऊँ मैं

बच्चों के हाथ में भला देते हैं ऐसी चीज़

देखो ख़राब हो गई मुझ से ये ज़िंदगी

बज़्म-ए-फ़लक में कौन है उस की रा'नाई का महरम-ए-राज़

किस को अपने दामन-ए-दिल के दाग़ दिखाएगा महताब

क्या पा सकेगी दुनिया हमारे दुखों का रम्ज़

रोते हैं क़हक़हों से तो हँसते हैं फूट के

अगर मैं चाहूँ बस इक चाल से उलट दूँ बिसात

मुझे ख़बर है कहाँ किस ने दाओ खेला है

पलट के हर्ज़ासराओं को किस लिए दूँ जवाब

भला बताओ ये लाइक़ हैं मुँह लगाने के

मो'जिज़ात-ए-दस्त-ए-कुन देखना था सो हम ने

पत्थरों पे दे मारा ख़ुद को आईना कर के

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