जिसको इज़्ज़त है उसको ग़ैरत है, जिसको ग़ैरत है उसको इज़्ज़त है।
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हमारे कलाम में वो अल्फ़ाज़ जो मोहज़्ज़िबाना गुफ़्तगू में होते हैं, निहायत कम मुस्तामल हैं और इसलिए उसकी इस्लाह की बहुत ज़रूरत है।
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बड़े बड़े हकीम और आलिम, वली-ओ-अब्दाल, नेक-ओ-अक़्ल-मंद, बहादुर-ओ-नाम-वर एक गँवार आदमी की सी सूरत में छुपे हुए होते हैं मगर उनकी ये तमाम खूबियाँ उम्दा तालीम के ज़रिए से ज़ाहिर होती हैं।
(तहज़ीब-उल-अख़्लाक़ बाबत यकुम शव्वाल 1289 हिज्री)
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बे-इल्मी मुफ़्लिसी की माँ है। जिस क़ौम में इल्म-ओ-हुनर नहीं रहता वहाँ मुफ़्लिसी आती है और जब मुफ़्लिसी आती है तो हज़ारों जुर्मों के सरज़द होने का बाइस होती है।
(तक़रीर-ए- जलसा-ए-अज़ीमाबाद पटना, 26 मई)
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लहजा: इसको भी तहज़ीब में बड़ा दख़ल है। अक्खड़ लहजा इस क़िस्म की आवाज़ जिससे शुब्हा हो कि आदमी बोलते हैं या जानवर लड़ते हैं, ना-शाइस्ता होने की निशानी है।
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