सुहैल अज़ीमाबादी की कहानियाँ
दिल का रोग
चम्पा नगर सेनिटोरियम। सिसकती हुई रूहों की बस्ती। लरज़ती हुई ज़िंदगियों की दुनिया। मुज़्तरिब और झिलमिलाती हुई शम्मों की अंजुमन। पुरफ़िज़ा मुक़ाम, शादाब दरख़्तों के झुण्ड में लंबा चौड़ा मैदान, मैदान में सब्ज़ घास का नज़रफ़रेब फ़र्श। उनमें लाल रंग की साफ़ सड़कें।
अंधेरे और उजाले में
अँधेरे में रात के बारह बज चुके थे, बँगले से बाहर बाग़ में कभी-कभी उल्लू के बोलने के आवाज़ गूँज उठती थी, वरना हर तरफ़ भयानक सन्नाटा छाया हुआ था, उस ख़ूबसूरत और लम्बे चौड़े मकान में सिर्फ़ तीन आदमी थे, दो नौकर और एक मालिक। बाग़ का माली, दूर एक कोने