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Sujit Sahgal Haasil's Photo'

सुजीत सहगल हासिल

1970 | धर्मशाला, भारत

सुजीत सहगल हासिल

ग़ज़ल 18

अशआर 11

रोक के अपनी आँख के आँसू हँस कर उस को रुख़्सत दी

तब समझे हैं यारो हम भी शहनाई क्या होती है

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उन को हर ज़ुल्म पर दु'आएँ दीं

सब्र की और इंतिहा क्या है

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देख तेरी सोहबतों का क्या असर आया है आज

एक आवारा परिंदा फिर से घर आया है आज

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कल तक जो कुछ था मिरा ईमान हो गया

इक 'आम आदमी से मैं इंसान हो गया

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छू भी लेती है मुसीबत गर मिरी दहलीज़ को

एक ज़र्रा हूँ मगर चट्टान हो जाता हूँ मैं

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