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सुल्तान अख़्तर

1940 - 2021 | पटना, भारत

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

अग्रणी आधुनिक शायरों में विख्यात।

सुल्तान अख़्तर के शेर

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मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी

तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं

फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा

मसरूफ़ हैं हम लोग ज़रूरत से ज़्यादा

इक ख़ौफ़-ए-बे-पनाह है आँखों के आर-पार

तारीकियों में डूबता लम्हा है सामने

सफ़र सफ़र मिरे क़दमों से जगमगाया हुआ

तरफ़ तरफ़ है मिरी ख़ाक-ए-जुस्तुजू रौशन

सब के होंटों पे मुनव्वर हैं हमारे क़िस्से

और हम अपनी कहानी भी नहीं जानते हैं

सामने आँखों के फिर यख़-बस्ता मंज़र आएगा

धूप जम जाएगी आँगन में दिसम्बर आएगा

हर एक दास्ताँ तुझ से शुरूअ होती है

हर एक क़िस्सा तिरे नाम पर तमाम हुआ

हमारी सादा-मिज़ाजी पे रश्क करते हैं

वो सादा-पोश जो बे-इंतिहा रंगीले हैं

किसी के वास्ते जीता है अब मरता है

हर आदमी यहाँ अपना तवाफ़ करता है

ये और बात कि 'अख़्तर' हवेलियाँ रहीं

खंडर में कम तो नहीं अपनी आबरू रौशन

फिर भी हम लोग वहाँ जीते हैं जीने की तरह

मौसम-ए-क़हर जहाँ ठहरा हुआ रहता है

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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