सय्यद एहतिशाम हुसैन के शेर
तेरा ही हो के जो रह जाऊँ तो फिर क्या होगा
ऐ जुनूँ और हैं दुनिया में बहुत काम मुझे
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दिल ने चुपके से कहा कोशिश-ए-नाकाम के बाद
ज़हर ही दर्द-ए-मोहब्बत की दवा हो जैसे
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न जाने हार है या जीत क्या है
ग़मों पर मुस्कुराना आ गया है
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मंज़िल न मिली तो ग़म नहीं है
अपने को तो खो के पा गया हूँ
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टैग : मंज़िल
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यूँ गुज़रता है तिरी याद की वादी में ख़याल
ख़ारज़ारों में कोई बरहना-पा हो जैसे
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मैं समझता हूँ मुझे दौलत-ए-कौनैन मिली
कौन कहता है कि वो कर गए बदनाम मुझे
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बुझीं शमएँ तो दिल जलाए हैं
यूँ अंधेरों में रौशनी की है
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वादी-ए-शब में उजालों का गुज़र हो कैसे
दिल जलाए रहो पैग़ाम-ए-सहर आने तक
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