सय्यद मसूद हसन मसूद के शेर
तिरा कूचा बहुत अच्छा है लेकिन
मिरे रहने की गुंजाइश कहाँ है
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ऐश-ए-दुनिया से ख़ुश न हो कोई
हम ने देखे हैं ऐसे ख़्वाब बहुत
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हज़ारों पैकर-ए-उम्मीद नज़रों से हुए ओझल
जो कुछ बाक़ी रहे थे वो भी पिन्हाँ होते जाते हैं
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आह ये चारा-साज़ियाँ हाए ये बे-नियाज़ियाँ
सब से नज़र मिली हुई सब से मगर अलग अलग
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किसी पाबंद-ए-ग़म की ज़िंदगी क्या
कभी नाले कभी फ़रियाद करना
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पहले सीते हैं हम गरेबाँ को
फिर उसे तार तार करते हैं
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