सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल 12
नज़्म 3
अशआर 11
जैसे मैं दोस्तों से हँस के गले मिलता हूँ
कोई मामूली अदाकार नहीं कर सकता
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere